चातुर्मास का आरंभ 6 जुलाई से, विशाखा नक्षत्र में होगा शुरू; चार महीनों तक नहीं होंगे विवाह और मांगलिक कार्य!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से चातुर्मास का शुभारंभ इस वर्ष 6 जुलाई रविवार को विशाखा नक्षत्र में हो रहा है। चार महीनों तक चलने वाला यह विशेष काल हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। चातुर्मास का अर्थ ही होता है – चार महीने का विशेष संयम और साधना का काल। ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला बताते हैं कि यह समय विवाह, यज्ञोपवित (जनेऊ संस्कार) और मुंडन जैसे मांगलिक कार्यों के लिए वर्जित होता है। इन चार महीनों में प्रमुख रूप से धर्म, भक्ति, ज्ञान और सत्संग का वातावरण बनता है।
इसी अवधि में कई साधक व्रत, उपवास और संयम का पालन करते हुए अपने जीवन को अनुशासित बनाने का प्रयास करते हैं। अनेक श्रद्धालु तीर्थ स्थलों पर जाकर कल्पवास करते हैं। वे 42 दिन, डेढ़ महीना या पूरे 3 महीने तक नदी किनारे या किसी तीर्थधाम में रहकर नियमपूर्वक साधना करते हैं। माना जाता है कि यह समय शरीर को रोगमुक्त और मन को एकाग्र करने के लिए अत्यंत उपयुक्त होता है।
चातुर्मास के इन चार महीनों में कई बड़े त्यौहार और धार्मिक आयोजन भी आते हैं। गुरु पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाली इस अवधि में रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, हरियाली तीज, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दशहरा और दीपावली जैसे पर्व पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाए जाते हैं। साथ ही महाकालेश्वर की सवारी, नाग पंचमी, कल्की जयंती, स्वतंत्रता दिवस, गोगा नवमी, करवा चौथ, धनतेरस और भाई दूज भी इसी काल में आते हैं।
कुछ विद्वान गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा) को ही चातुर्मास का आरंभ मानते हैं। परंतु ज्यादातर पंचांग और पुराणों के अनुसार यह देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी) से ही प्रारंभ होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीनों तक पाताल में विश्राम करते हैं। इस कारण मांगलिक कार्यों पर प्रतीक्षा रहती है। कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी एकादशी) को भगवान विष्णु के जागने के साथ ही पुनः विवाह आदि शुभ कार्य आरंभ होते हैं।